Missionary and jihadi work in India

मिशनरी हो या मुसल्ले,जहाँ भी गए अपने धर्म प्रसार-प्रचार हेतु ही गए।.. 
जब ये विदेशी आक्रांता भारत आये तो यहाँ के हर चीज पे वार किए.. धन और सत्ता तो केंद्र में थी ही थी साथ ही साथ आस्था,विश्वास,धर्म पे भी खूब कुठाराघात किये।.. हमारा मनोबल तोड़ने, हमें नीचा दिखाने,हमारा मखौल उड़ाने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़े।
जब यहाँ आये तो देखा कि मिट्टी,पत्थर, सोने,चांदियों से बने मूर्तियों के प्रति बहुत गहरी आस्था है.. तो वे हमें दिखा-दिखा कर ही लूटे-खसोटे और तोड़-फोड़ कर खण्डित-खण्डित किये.. देखो रे अपने भगवान को जिसकी तुम पूजा करते हो.. टूट रहा है खण्डित हो रहा है फिर भी नहीं आ रहा है.. इनके भक्त कट रहे हैं फिर भी प्रकट नहीं हो रहा हैं.. कैसा है रे तेरा भगवान!? .. हमारे सामने ही मूर्तियों को पैरों से रौंद डालते.. दिखा-दिखा कर रौंदते और हम कुछ न कर पाते।.. मंदिरों को जमींदोज कर कर मस्जिदें खड़ी कर दी गई!! .. किसलिए !? .. तुम्हें अपने धर्म से विमुख करने के लिए.. तुम्हारे मनोबल को चूर-चूर करने के लिए.. तुम्हें लज्जित करने के लिए.. ताकि तुम उनके समधर्मी बन सको।
बाद में वे अगला चरण चलते हुए बौद्धिक हमला करेंगे.. मूर्ति पूजा कहीं से भी ठीक नहीं है.. तुम्हारे वेदों में भी इसकी निंदा की गई है।.. पत्थर को पूजने से कुछ नही हासिल होने वाला.. वगेरह वगेरह..
और पढ़े-लिखे भोले हिन्दू इस सुर में सुर मिलाते नज़र आएंगे।
अब मन्दिर से उठे तो दूसरी आस्था पे टूट पड़े.. "गाय"
तुम्हारे सामने गाय काटेंगे.. सरेआम काटेंगे.. खाएंगे भी सरेआम .. तुम क्या कबाड़ लोगे.. तेरी माँ का हम कीमा बना के खाएंगे,घण्टा उखाड़ लोगे तुम हमारा।
अब बौद्धिक हमला झेलो...
अरे मांस तो मांस होता है चाहे वो गाय का हो या बकरे का.. साइंटिस्ट बताते है कि गाय का मांस सबसे उपयुक्त मांस होता है खाने के लिहाज से.. अगर गाय तुम्हारी माता है तो फिर तुम्हारी माता कौन है!?... गाय तुम्हारी माता हो सकती है तो भैंस,बकरी को चाची-मौसी तो हो ही सकती है।.. जीव आखिर जीव ही होता है.. चाहे गाय मरे,बकरी मरे, भैंस मरे या ऊंट मरे.. जान तो सबके होते है न! तो फिर गाय पे इतनी हाय-तौबा क्यों??
अब इसमें पढ़े-लिखे भोले हिन्दू अपना पिछवाड़ा उठा समर्थन करते मिलेंगे.. बीफ पार्टी आयोजन करेंगे.. सरेआम गाय काटेंगे... तुमको जो उखाड़ना है उखाड़ लो।
कल चलते-चलते तुलसी का पौधा को पकड़ेंगे.. कुछ लेना-देना तो रहेगा नहीं.. लेकिन तुम्हें नीचा दिखाने के लिए कुछ भी करेंगे.. तुम्हारे सामने उसके ऊपर मुतेंगे.. क्या कर लोगे तुम उसका!?
उसके बाद बौद्धिक तर्क झेलो..
अबे पौधा पौधा होता है.. चाहे वो तुलसी का हो या किसी और का.. तुम भी कहीं बाहर मूतते होगे तो किसी घास-फूंस के ऊपर ही जाता होगा.. तो तुलसी के ऊपर हम मूत दिए तो क्या हो गया!? .. अगर तुलसी 24 घण्टे ऑक्सीजन देती है तो अन्य पौधे क्या कार्बनडाईऑक्साइड छोड़ते है!?
अब इसमें पढ़े-लिखे भोले हिन्दू हलेलुइया हलेलुइया करेंगे।
इसके बाद फिर "सिंदूर" को कुछ ऐसे ही अपमानित करेंगे मखौल उड़ाएंगे।
अबे हिन्दू के अलावे दुनिया के किसी भी धर्म की औरतें सिंदूर नहीं लगाती हैं.. तो क्या वो सुहागन नहीं होती हैं.. बच्चे पैदा नहीं करती हैं.. उनके खोपड़ियों को ठंडक नही मिलती हैं ??
इसमें भी पढ़े-लिखे भोले हिन्दू लोग सियार की भांति हुंआ-हुँआ करने लगेंगे।
और भी ऐसे ही अन्य चीजें पकड़ लीजिये जिसपे हमारी आस्था है व पहचान है उसपे इसी तरह से हमला करेंगे और मखौल उड़ाएंगे। और इसमें हमारे पढ़े-लिखे भोले हिन्दू लोग जिंदाबाद जिंदाबाद करेंगे।
इसके उलट क्या होंगा..
एक पढ़ा-लिखा भोला टाइप का हिन्दू क्या प्रश्न उठाएगा..
"भाई वो आप अपने औरतों को बुरके में क्यों रखते हो?"
उ० - "भाई आला-ताला ने हमारी ख़्वातीनों को बड़े प्यार से बनाया है.. इसलिए हम उन्हें बुरके अंदर रखते हैं.. हमारे धर्म में बिना परदे के स्त्रियों का रहना हराम माना गया है।"
"भाई वो तीन तलाक का क्या लफड़ा है!?"
"भाई वो हमारा अपना मजहबी मामला है उसमें बीच में पड़ने का नहीं।"
"भाई वो लुल्ली काटना क्यों जरूरी होता है!?"
"इसके पीछे साइंटिफिक रीजन है.. इससे ये नहीं होता इससे वो नहीं होता.. फलाना बीमारी नहीं होता.. वगेरह वगेरह।"
"भाई वो काबा में जा के काले पत्थर को क्यों चूमते हो!!"
"भाई वो हमारे लिए सबसे पवित्र जगह है.. हर मुसलमान का फर्ज है कि उस पत्थर को चुम्मे.. उसको हमारे अब्राहम को देवदूत गैब्रिएल ने दिया था।"
और इन सब चीजों के जवाब में पढ़े-लिखे भोले हिन्दू लोग आमीन-आमीन करते नजर आएंगे।
वे तुम्हारी आस्थाओं का तुम्हारे सामने ही मट्टी-पलीद करते हुए तुम्हारी वाट लगा रहे हैं और तुम बुद्धिजीवी नामक नपुंसकता का लबादा ओढ़े पिछवाड़ा उठाये जा रहे हो और उनकी चूतियापा भरी आस्थाओं के ऊपर चूं तक नहीं करते हो।
एक बात कान खोल कर सुन लो हिंदुओं... वे गाय खाने के लिए नहीं काट रहे बल्कि तुम्हारी औकात नापने के लिए काट रहे हैं.. और भविष्य में ऐसे ही और भी चीजों में औकात नापते रहेंगे.. तुम पकड़ के घण्टा हिलाते रहना।
(नोट- ऊपर जो पढ़े-लिखे 'भोले' हिन्दू में जो 'भोला' शब्द प्रयोग में आया है उसका अर्थ 'चमन चूतिया' पकड़े)

Sugar Good or Bad

चीनी बनाने की सबसे पहली मिल अंग्रेजो ने 1868 मेँ लगाई थी ।उसके *"पहले भारतवासी शुद्ध देशी गुड़ खाते थे और कभी बीमार नहीँ पड़ते थे"* 

चीनी एक जहर है जो अनेक रोगों का कारण है, जानिये कैसे...
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(1)-- चीनी बनाने की प्रक्रिया में गंधक का सबसे अधिक प्रयोग होता है । गंधक माने पटाखों का मसाला
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(2)-- गंधक अत्यंत कठोर धातु है जो शरीर मेँ चला तो जाता है परंतु बाहर नहीँ निकलता ।
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(3)-- चीनी कॉलेस्ट्रॉल बढ़ाती है जिसके कारण हृदयघात या हार्ट अटैक आता है ।
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(4)-- चीनी शरीर के वजन को अनियन्त्रित कर देती है जिसके कारण मोटापा होता है ।
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(5)-- चीनी रक्तचाप या ब्लड प्रैशर को बढ़ाती है ।
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(6)-- चीनी ब्रेन अटैक का एक प्रमुख कारण है ।
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(7)-- चीनी की मिठास को आधुनिक चिकित्सा मेँ सूक्रोज़ कहते हैँ जो इंसान और जानवर दोनो पचा नहीँ पाते ।
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(8)-- चीनी बनाने की प्रक्रिया मेँ तेइस हानिकारक रसायनोँ का प्रयोग किया जाता है ।
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(9)-- चीनी डाइबिटीज़ का एक प्रमुख कारण है ।
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(10)-- चीनी पेट की जलन का एक प्रमुख कारण है ।
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(11)-- चीनी शरीर मे ट्राइ ग्लिसराइड को बढ़ाती है ।
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(12)-- चीनी पेरेलिसिस अटैक या लकवा होने का एक प्रमुख कारण है।
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(13) कृपया जितना हो सके, चीनी से गुड़ पे आएँ ।
अच्छी बातें, अच्छे लोगों, अपने मित्र , रिश्तेदार और ग्रुप में अवश्य शेयर करे ।।अरोग्या भारती चित्रकूटधाम विभाग

वटसावित्री व्रत

*🌹वटसावित्री-व्रत*🌹
🔹(वटसावित्री व्रत - अमावस्यांत पक्ष : 25 मई/
वटसावित्री व्रतारम्भ (पूर्णिमांत पक्ष) : 6 जून
वट पूर्णिमा : 8 जून

🔹वृक्षों में भी भगवदीय चेतना का वास है, ऐसा दिव्य ज्ञान वृक्षोपासना का आधार है । इस उपासना ने स्वास्थ्य, प्रसन्नता, सुख-समृद्धि, आध्यात्मिक उन्नति एवं पर्यावरण संरक्षण में बहुत महत्त्वपूर्ण योगदान दिया है ।
🔹वातावरण में विद्यमान हानिकारक तत्त्वों को नष्ट कर वातावरण को शुद्ध करने में वटवृक्ष का विशेष महत्त्व है । वटवृक्ष के नीचे का छायादार स्थल एकाग्र मन से जप, ध्यान व उपासना के लिए प्राचीन काल से साधकों एवं महापुरुषों का प्रिय स्थल रहा है । यह दीर्घ काल तक अक्षय भी बना रहता है । इसी कारण दीर्घायु, अक्षय सौभाग्य, जीवन में स्थिरता तथा निरन्तर अभ्युदय की प्राप्ति के लिए इसकी आराधना की जाती है ।
🔹वटवृक्ष के दर्शन, स्पर्श तथा सेवा से पाप दूर होते हैं; दुःख, समस्याएँ तथा रोग जाते रहते हैं । अतः इस वृक्ष को रोपने से अक्षय पुण्य-संचय होता है । वैशाख आदि पुण्यमासों में इस वृक्ष की जड़ में जल देने से पापों का नाश होता है एवं नाना प्रकार की सुख-सम्पदा प्राप्त होती है । 
🔹इसी वटवृक्ष के नीचे सती सावित्री ने अपने पातिव्रत्य के बल से यमराज से अपने मृत पति को पुनः जीवित करवा लिया था । तबसे 'वट-सावित्री' नामक व्रत मनाया जाने लगा । इस दिन महिलाएँ अपने अखण्ड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए व्रत करती हैं । 
🔹व्रत-कथा : सावित्री मद्र देश के राजा अश्वपति की पुत्री थी । द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से उसका विवाह हुआ था । विवाह से पहले देवर्षि नारदजी ने कहा था कि सत्यवान केवल वर्ष भर जीयेगा । किंतु सत्यवान को एक बार मन से पति स्वीकार कर लेने के बाद दृढ़व्रता सावित्री ने अपना निर्णय नहीं बदला और एक वर्ष तक पातिव्रत्य धर्म में पूर्णतया तत्पर रहकर अंधेे सास-ससुर और अल्पायु पति की प्रेम के साथ सेवा की । वर्ष-समाप्ति  के  दिन  सत्यवान  और  सावित्री समिधा लेने के लिए वन में गये थे । वहाँ एक विषधर सर्प ने सत्यवान को डँस लिया । वह बेहोश  होकर  गिर  गया । यमराज आये और सत्यवान के सूक्ष्म शरीर को ले जाने लगे । तब सावित्री भी अपने पातिव्रत के बल से उनके पीछे-पीछे जाने लगी । यमराज द्वारा उसे वापस जाने के लिए कहने पर सावित्री बोली :
''जहाँ जो मेरे पति को ले जाय या जहाँ मेरा पति स्वयं जाय, मैं भी वहाँ जाऊँ यह सनातन धर्म है । तप, गुरुभक्ति, पतिप्रेम और आपकी कृपा से मैं कहीं रुक नहीं सकती । तत्त्व को जाननेवाले विद्वानों ने सात स्थानों पर मित्रता कही है । मैं उस मैत्री को दृष्टि में रखकर कुछ कहती हूँ, सुनिये । लोलुप व्यक्ति वन में रहकर धर्म का आचरण नहीं कर सकते और न ब्रह्मचारी या संन्यासी ही हो सकते हैं । विज्ञान (आत्मज्ञान के अनुभव) के लिए धर्म को कारण कहा करते हैं, इस कारण संतजन धर्म को ही प्रधान मानते हैं । संतजनों के माने हुए एक ही धर्म से हम दोनों श्रेय मार्ग को पा गये हैं ।''
सावित्री के वचनों से प्रसन्न हुए यमराज से सावित्री ने अपने ससुर के अंधत्व-निवारण व बल-तेज की प्राप्ति का वर पाया । 
सावित्री बोली : ''संतजनों के सान्निध्य की सभी इच्छा किया करते हैं । संतजनों का साथ निष्फल नहीं होता, इस कारण सदैव संतजनों का संग करना चाहिए ।''
यमराज : ''तुम्हारा वचन मेरे मन के अनुकूल, बुद्धि और बल वर्धक तथा हितकारी है । पति के जीवन के सिवा कोई वर माँग ले ।''
सावित्री ने श्वशुर के छीने हुए राज्य को वापस पाने का वर पा लिया ।
सावित्री : ''आपने प्रजा को नियम में बाँध रखा है, इस कारण आपको यम कहते हैं । आप मेरी बात सुनें । मन-वाणी-अन्तःकरण से किसीके साथ वैर न करना, दान देना, आग्रह का त्याग करना - यह संतजनों का सनातन धर्म है । संतजन वैरियों पर भी दया करते देखे जाते हैं ।''
यमराज बोले : ''जैसे प्यासे को पानी, उसी तरह तुम्हारे वचन मुझे लगते हैं । पति के जीवन के सिवाय दूसरा कुछ माँग ले ।''
सावित्री ने अपने निपूत पिता के सौ औरस कुलवर्धक पुत्र हों ऐसा वर पा लिया ।
सावित्री बोली : ''चलते-चलते मुझे कुछ बात याद आ गयी है, उसे भी सुन लीजिये । आप आदित्य के प्रतापी पुत्र हैं, इस कारण आपको विद्वान पुरुष 'वैवस्वत' कहते हैं । आपका बर्ताव प्रजा के साथ समान भाव से है, इस कारण आपको 'धर्मराज' कहते हैं । मनुष्य को अपने पर भी उतना विश्वास नहीं होता जितना संतजनों में हुआ करता है । इस कारण संतजनों पर सबका प्रेम होता है ।'' 
यमराज बोले : ''जो तुमने सुनाया है ऐसा मैंने कभी नहीं सुना ।''
प्रसन्न यमराज से सावित्री ने वर के रूप में सत्यवान से ही बल-वीर्यशाली सौ औरस पुत्रों की प्राप्ति का वर प्राप्त किया । फिर बोली : ''संतजनों की वृत्ति सदा धर्म में ही रहती है । संत ही सत्य से सूर्य को चला रहे हैं, तप से पृथ्वी को धारण कर रहे हैं । संत ही भूत-भविष्य की गति हैं । संतजन दूसरे पर उपकार करते हुए प्रत्युपकार की अपेक्षा नहीं रखते । उनकी कृपा कभी व्यर्थ नहीं जाती, न उनके साथ में धन ही नष्ट होता है, न मान ही जाता है । ये बातें संतजनों में सदा रहती हैं, इस कारण वे रक्षक होते हैं ।''
यमराज बोले : ''ज्यों-ज्यों तू मेरे मन को अच्छे लगनेवाले अर्थयुक्त सुन्दर धर्मानुकूल वचन बोलती है, त्यों-त्यों मेरी तुझमें अधिकाधिक भक्ति होती जाती है । अतः हे पतिव्रते और वर माँग ।'' 
सावित्री बोली : ''मैंने आपसे पुत्र दाम्पत्य योग के बिना नहीं माँगे हैं, न मैंने यही माँगा है कि किसी दूसरी रीति से पुत्र हो जायें । इस कारण आप मुझे यही वरदान दें कि मेरा पति जीवित हो जाय क्योंकि पति के बिना मैं मरी हुई हूँ । पति के बिना मैं सुख, स्वर्ग, श्री और जीवन कुछ भी नहीं चाहती । आपने मुझे सौ पुत्रों का वर दिया है व आप ही मेरे पति का हरण कर रहे हैं, तब आपके वचन कैसे सत्य होंगे ? मैं वर माँगती हूँ कि सत्यवान जीवित हो जायें । इनके जीवित होने पर आपके ही वचन सत्य होंगे ।''
यमराज ने परम प्रसन्न होकर 'ऐसा ही हो' यह  कह  के  सत्यवान  को  मृत्युपाश  से  मुक्त 
कर दिया ।
व्रत-विधि : इसमें वटवृक्ष की पूजा की जाती है । विशेषकर सौभाग्यवती महिलाएँ श्रद्धा के साथ ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी से पूर्णिमा तक अथवा कृष्ण त्रयोदशी से अमावास्या तक तीनों दिन अथवा मात्र अंतिम दिन व्रत-उपवास रखती हैं । यह कल्याणकारक  व्रत  विधवा,  सधवा,  बालिका, वृद्धा, सपुत्रा, अपुत्रा सभी स्त्रियों को करना चाहिए ऐसा 'स्कंद पुराण' में आता है । 
प्रथम दिन संकल्प करें कि 'मैं मेरे पति और पुत्रों की आयु, आरोग्य व सम्पत्ति की प्राप्ति के लिए एवं जन्म-जन्म में सौभाग्य की प्राप्ति के लिए वट-सावित्री व्रत करती हूँ ।'
वट  के  समीप  भगवान  ब्रह्माजी,  उनकी अर्धांगिनी सावित्री देवी तथा सत्यवान व सती सावित्री के साथ यमराज का पूजन कर 'नमो वैवस्वताय' इस मंत्र को जपते हुए वट की परिक्रमा करें । इस समय वट को 108 बार या यथाशक्ति सूत का धागा लपेटें । फिर निम्न मंत्र से सावित्री को अर्घ्य दें ।
अवैधव्यं च  सौभाग्यं देहि  त्वं मम  सुव्रते । पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तु ते ।।
निम्न श्लोक से वटवृक्ष की प्रार्थना कर गंध, फूल, अक्षत से उसका पूजन करें । 
वट  सिंचामि  ते  मूलं सलिलैरमृतोपमैः । यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले ।
तथा पुत्रैश्च पौत्रैश्च सम्पन्नं कुरु मां सदा ।। 
भारतीय संस्कृति  वृक्षों  में  भी  छुपी  हुई भगवद्सत्ता  का  ज्ञान  करानेवाली,  ईश्वर  की सर्वश्रेष्ठ कृति- मानव के जीवन में आनन्द, उल्लास एवं चैतन्यता भरनेवाली है ।

Knowledge about Update & Upgrade

आज से 5 या 10 साल पहले ऐसी कोई ऐसी जगह नहीं होती थी जहां PCO न हो। फिर जब सब की जेब में मोबाइल फोन आ गया, तो PCO बंद होने लगे.. फिर उन सब PCO वालों ने फोन का recharge बेचना शुरू कर दिया।अब तो रिचार्ज भी ऑन लाइन होने लगा है।

आपने कभी ध्यान दिया है..?

आजकल बाज़ार में हर तीसरी दूकान आजकल मोबाइल फोन की है।
sale, service, recharge , accessories, repair, maintenance की।

अब सब Paytm से हो जाता है.. अब तो लोग रेल का टिकट भी अपने फोन से ही बुक कराने लगे हैं.. अब पैसे का लेनदेन भी बदल रहा है.. Currency Note की जगह पहले Plastic Money ने ली और अब Digital हो गया है लेनदेन।

दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है.. आँख कान नाक खुले रखिये वरना आप पीछे छूट जायेंगे..।

1998 में Kodak में 1,70,000 कर्मचारी काम करते थे और वो दुनिया का 85% फ़ोटो पेपर बेचते थे..चंद सालों में ही Digital photography ने उनको बाज़ार से बाहर कर दिया.. Kodak दिवालिया हो गयी और उनके सब कर्मचारी सड़क पे आ गए।

आपको अंदाजा है कि आने वाले 10 सालों में दुनिया पूरी तरह बदल जायेगी और आज चलने वाले 70 से 90% उद्योग बंद हो जायेंगे।

चौथी औद्योगिक क्रान्ति में आपका स्वागत है...

Uber सिर्फ एक software है। उनकी अपनी खुद की एक भी Car नहीं इसके बावजूद वो दुनिया की सबसे बड़ी Taxi Company है।

Airbnb दुनिया की सबसे बड़ी Hotel Company है, जब कि उनके पास अपना खुद का एक भी होटल नहीं है।

US में अब युवा वकीलों के लिए कोई काम नहीं बचा है, क्यों कि IBM Watson नामक Software पल भर में ज़्यादा बेहतर Legal Advice दे देता है। अगले 10 साल में US के 90% वकील बेरोजगार हो जायेंगे... जो 10% बचेंगे... वो Super Specialists होंगे।

Watson नामक Software मनुष्य की तुलना में Cancer का Diagnosis 4 गुना ज़्यादा Accuracy से करता है। 2030 तक Computer मनुष्य से ज़्यादा Intelligent हो जाएगा।

2018 तक Driverless Cars सड़कों पे उतरने लगेंगी। 2020 तक ये एक अकेला आविष्कार पूरी दुनिया को बदलने की शुरुआत कर देगा।

अगले 10 सालों में दुनिया भर की सड़कों से 90% cars गायब हो जायेंगी... जो बचेंगी वो या तो Electric Cars होंगी या फिर Hybrid...सडकें खाली होंगी,Petrol की खपत 90% घट जायेगी,सारे अरब देश दिवालिया हो जायेंगे।

आप Uber जैसे एक Software से Car मंगाएंगे और कुछ ही क्षणों में एक Driverless कार आपके दरवाज़े पे खड़ी होगी...उसे यदि आप किसी के साथ शेयर कर लेंगे तो वो ride आपकी Bike से भी सस्ती पड़ेगी।

Cars के Driverless होने के कारण 99% Accidents होने बंद हो जायेंगे.. इस से Car Insurance नामक धन्धा बंद हो जाएगा।

ड्राईवर जैसा कोई रोज़गार धरती पे नहीं बचेगा।जब शहरों और सड़कों से 90% Cars गायब हो जायेंगी, तो Traffic और Parking जैसी समस्याएं स्वतः समाप्त हो जायेंगी...क्योंकि एक कार आज की 20 Cars के बराबर होगी।

*समय के साथ बदलने की तैयारी करो।*
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HMT *(घडी)*
BAJAJ *(स्कूटर)*
DYNORA *(टीवी)*
MURPHY *(रेडियो)*
NOKIA *(मोबाइल)*
RAJDOOT *(बाईक)*
AMBASDO *( कार)*

👉 मित्रों..इन सभी की गुणवक्ता में कोई कमी नहीं थी फिर भी बाजार से बाहर हो गए.!!
कारण...
*समयके साथ बदलाव*
*नहीं किया.!!*

इसलिए...
व्यक्तिको समयानुसार अपने व्यापार एवं अपने 
*स्वभावमें भी बदलाव*
करते रहना चाहिएँ.!!
👉 *Update & Upgrade*
*Time to Time.!!*
समयके साथ चलिये और सफल रहिये

भीम आर्मी

धर्मान्तरण की जो धमकी देते हैं उसका मलाल न रखें। गाजे बाजे के साथ डोली में बैठाकर विद़ा करें।ये चरित्रहीन व वैश्या जैसे लालची लोग हैं।जो बिक गये वे खरीददार नहीं हो सकते।

गूगल देख लें,जोगिन्दर मंडल 29% लेकर गया बंगलादेश और खुद जान बचाकर मरने के लिए भारत भाग आया।बाकि 28%काट डाले गये वहाँ।भीम आर्मी वाले सुजान को जोगिन्दर मंडल की हकीकत जरूर जानना चाहिये।

ये धर्म बदलें और नागरिकता भी बदल लें।पाकिस्तान को दिल में रखने वाला 99% मुस्लिम भी यहीं चिपका रहना चाहता है।वहाँ तो जाने पर मुहाजिर कहलाता है पर गीत प्यार के जरूर गाता है।

ऐसा न समझें कि सार्थक प्रतिरोध कभी नहीं हुआ न हम कभी खुशफहमी में हैं हम।....पर इतिहास यही कहता है कि इतने आक्रमणों को किसी ने नहीं झेला।और हमारी अच्छाईयाँ जो हैं वही हमारी कमजोरियाँ हैं।हम आदमी हैं आदमी को प्यार करते हैं।गोरी और गजनी अपनी सेना के आगे गाय रख कर चलते थे,उसके पीछे बच्चे ,उसके पीछे महिलाएँ और हमारे योद्धा तलवारें नीचे कर लेते थे।यह भी सत्य इतिहास मे दर्ज है कि मात्र 300 फिरंगियों की सेना के सामने सेनापति, गद्दार, मीरजाफर ने 18000 सैनिकों को सरैण्डर करने का आर्डर दिया और जांबाज अनुशासित सैनिको ने ऐसा ही किया।
##कोई कौम दुनिया में नहीं है जिसने लगातार करीब 1100 वर्ष आक्रमण का सामना किया हो...गुलाम हुआ पर रवानी वही रही।अब भी दुश्मन का ख्वाब है #गजवा-ए-हिन्द....पर यहाँ आलम ये है कि लाख लालू, मुलायम, केजरिवालों, ममताओं, कांग्रेसियों के रहते...कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।


आज में इन देश के सेक्युलर नेताओ को बता देता हूँ कि इस देश मे जितने गद्दार है उससे कई गुना इस देश पर मर मिटने वाले सच्चे हिन्दू भी है।।

कार्ल मार्क्स

धर्म को अफीम मानने वाले "कार्ल मार्क्स" की नाजायज औलादें चरस खाकर JNU में साम्यवाद के उपदेश देती है और सनातन धर्म को समाप्त करने के सपने देखती है..!!
"हीगल" के विचारों का खून करके मनुष्य को पेट पालने वाला जानवर समझने वाले मार्क्स ने सनातन को जाना होता तो राक्षसी विचारधारा को जन्म न देता…!!
मार्क्स ने स्वयं दो भोगवादी पंथो को अपनाया था जिससे उसकी मानसिकता बन गई कि, धर्म पूंजीवादियों का पोषक है और पिछड़ो का शोषक, लेकिन इस तथाकथित बुद्धिजीवी ने सनातन को नहीं जाना जिसमें "सर्वजनसुखाय और वसुधैव कुटुम्बकम्" के सिद्धान्त प्राणी मात्र के सुख की कामना करते है ...!!! वो धर्म क्या पूंजीवाद को बढ़ावा देगा जिस धर्म में दान करने के पचासों तरीके बताये गए हैं..!!
सनातन, को इन राक्षसी विचारधारा वालों से समानता सीखने की आवश्यकता नहीं है जो "अमीर को गरीब और गरीब से अमीर बने हुए व्यक्ति को फिर से गरीब बनाने के उपदेश देती है..!! जिसमें लेनिन, स्टालिन,माओतसेतुंग, फिदेल कास्त्रो जैसे भेड़िये तानाशाह पनपते है …!!!
अरे हम वो सनातनी है जिसमें "नामदेव" जैसे संत हुए जिनकी रोटी कुत्ता उठाके जाता है तो कुत्ते को डंडा लेके पीटने की बजाय, उसके पीछे घी का कटोरा लेके भागते है और कहते है कि...
"प्रभु रूखी न खाओ थोड़ा घी तो लेते जाओ"
हमने तो प्राणी मात्र में ईश्वर को देखा है..!! जो सनातन पेड़- पौधों में भी ईश्वर का रूप देखता है, जो सनातन तत्व की दृष्टि से समस्त प्राणियों को परब्रह्म परमात्मा का सनातन अंश मानता हो, उसे तुम नक्सली समानता सिखाओगे..??
एक बात कान खोल के सुन लो अधर्मियों "जो सनातन नहीं मिटा लंकेश की तलवार से, जो सनातन नहीं मिटा कंस की हुंकार से वो सनातन क्या मिटेगा लाल चढ्ढी वालों की चित्कार से..!!

शेर सिंह राणा

महान सम्राट पृथ्वीराज चौहान के वंशज
"शेर सिंह राणा"
मित्रो.,
आज हम एक ऐसे हिन्दू
वीर की कहानी बताने जा रहे हैं है जिसने तुर्को की धरती में दफ़न अपने
कुल के स्वाभिमान पृथ्वीराज चौहान की अस्थियाँ हिन्दुस्तान लाया l
जी हां "शेर सिंह राणा"
इनका जन्म 17 मई 1976 में सिसोदिया कुल में हुआ था l इनके जीवन से जुडी कुछ मुख्य शीर्षक पर हम प्रकाश डाल रहे है आप लोगो इसे अपने मित्रो से साझा करे lऔर इस हिन्दू वीर के रिहाई के कामना करे..
जय श्री कृष्णा l
जेल मे बंद डकेत फूलन देवी के कातिल के रूप में तो " शेर सिंह राणा"
को सब जानते हे, पर देश के एक महान सम्राट के सम्मान को बनाये
रखने के लिए उसने वो कर दिखाया जो न तो कोई भारतीय कर
पाया न भारत सरकार,
पर जब इस जेल में बंद शेर को कही से एक जानकारी मिली की अफगानिस्तान
मे मोहमद गौरी की मजार के बाहर अंतिम हिन्दू सम्राट महान "पृथ्वीराज चौहान " की अस्थिया रखी गई है जिन्हें आज तक हां जाने वाला हर शख्श अपमानित करता है !
इतना सुनते ही इस
"पिंजरे में बंद शेर " ने ठान लिया की वह उन अस्थियो को ससम्मान हिंदुस्तान
लेकर आयेगा !देश की सबसे मजबूत जेल"तिहाड़" को तोड़ कर उन्होंने अफगानिस्तान जाने का सोचा, और उन्होंने वो कर भी दिखाया,पूरा देश अचंभित हो गया की-
तिहाड़ से निकल कर वो अफगानिस्तान पहुचे तथा 812 वर्षो से अपमानित की जा रही पृथ्वीराज चौहान की अस्थियो को अपने केमरे मे डाल कर भाग निकले व वहा से अपनी माँ के नाम उन अस्थियो को कोरियर कर दिया !
भला जेल से भागने के बाद कोई अपनी जान फिर क्यों जोखिम मे डालेगा." शेर
सिंह राणा " वो शेर है जिसने इस युग मे भी वास्तविक क्षत्रिय धर्म के अनुरूप जीवन जिया है !३५ साल की उम्र मे उन्होंने वो कर दिखाया जो कोई ना कर सका !
""उन्होंने वो किया जो एक बेटा अपने पिता के लिए करता हे,उनकी अस्थियो का विसर्जन इसलिए मेने उन्हें सम्राट का बेटा कह कर संबोधित किया हे,""
शायद पूर्वजन्म में वो सम्राट पर्थ्वीराज चोहान के बेटे रहे हो और पिछले जन्म का कर्ज उन्होंने इस जन्म में पूरा किया हो,
अफगानिस्तान से लोटने बाद उन्होंने 2006 मे कोलकाता मे सरेंडर किया !
आज वो तिहाड़ की जेल नंबर २ की हाई रिस्क बेरक मे बंद है !
11 वर्षो से जेल मे बंद इस रियल हीरो के जिन्दगी के पहलु सब के साथ बांटे

     *🚩भगवा योद्धा*

देशभक्त अम्बेडकर और गद्दार नेहरू

देशभक्त अम्बेडकर और गद्दार नेहरू :

जब नेहरु ने कश्मीर के प्रमुख नेता शेख अब्दुल्ला को कश्मीर को भारत के अन्य राज्यों की जगह एक विशेष राज्य या एक अलग देश की तरह से मान्यता प्रदान करते हुए विवादित धारा 370 को भारत के संविधान में डलवाने के लिए डॉक्टर अम्बेडकर के पास भेजा तो डॉ. आंबेडकर ने उस समय जो कहा था वो आज भी पढने योग्य और आँखें खोल देने वाला है।

डॉ. अम्बेडकर ने शेख अब्दुल्ला के मूंह पर कहा था -

'' तो आप चाहते हैं की कश्मीर को सारी सहायता हिन्दुस्तान दे , हर साल कश्मीर को करोड़ों रुपैया हिंदुस्तान भेजे , कश्मीर के सारे विकास कार्य के सारे खर्चे हिन्दुस्तान उठाये , कोई भी हमला होने पर कश्मीर की रक्षा हिन्दुस्तान करे और सारे भारत में कश्मीरियों को बराबरी के अधिकार मिलें लेकिन उसी भारत और भारतीयों को कश्मीर में बराबरी का कोई अधिकार ना हो ??"

"मैं भारत का कानून मंत्री हूँ और इस भारत-विरोधी धारा 370 को मंजूरी देकर कम से कम मैं तो अपने देश से गद्दारी नहीं कर सकता हूँ। नेहरु जी से जाकर कहियेगा की एक देशद्रोही ही इस धारा को भारत के संविधान में डालने की मंजूरी दे सकता है और मैं वो देशद्रोही नहीं हूँ।"

और ये कहकर उन्होनें शेख अब्दुल्ला को अपने ऑफिस से निकाल दिया। आग-बबूला शेख अब्दुल्ला नेहरु के पास पहुंचा और उसे सारी बात बताई, तब नेहरु ने अलोकतांत्रिक तरीके से गोपालस्वामी अयंगर से इस भारत-विरोधी धारा 370 को भारत के संविधान में डलवाया जिसका खामियाजा हमारा भारत देश आजतक भुगत रहा है, पाकिस्तान परस्त और गद्दार कश्मीरियों की चोरी और सीनाजोरी के रूप में !!!!!!!

अकबर की कब्र

अकबर महान, हमें इतिहास की किताबो में यही पढ़ाया जाता है। पुरे #भारतवर्ष में अकबर की कब्र कहीँ भी देंखने को नही मिलती। अब जरा कल्पना कीजिये की अगर कब्र होती तो ?
तो जितने भी सेक्युलर लोग है, वो वहां पर माथा टेकने जरूर जाते और अकबर महान के नारे लगाते। और तो और वहां पर मेले लगने भी शुरू हो जाते। 
पर ऐसा नही है और इसका श्रेय जाता है वीर हिंदू #राजाराम जाट को। जिन्होंने अकबर की कब्र खोद डाली थी और उसकी हड्डियां निकाल कर जला डाली थी।

शत शत नमन इस वीर योद्धा को
जय हो वीर बलिदानी हिन्दू धर्मरक्षक #राजाराम जाट की

देने वाला कौन ?

*देने वाला कौन ?*
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आज हमने भंडारे में भोजन करवाया। आज हमने ये बांटा, आज हमने वो दान किया...
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 हम अक्सर ऐसा कहते और मानते हैं। इसी से सम्बंधित एक अविस्मरणीय कथा सुनिए...
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एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल पाता था।
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एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।
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कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला। 
लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई तो साधु ने कहा कि- "प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं। इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित रह सके।"
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समय बीता। साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने कहा---
"ऋषिवर...!! अब जब भी आपकी प्रभु से बात हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।"
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अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया। 
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लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं। 
उसने बिना कल की चिंता किए, सारे अनाज का भोजन बनाकर फकीरों और भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।
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लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं। उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया। 
यह सिलसिला रोज-रोज चल पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।
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कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे को मिला तो लकड़हारे ने कहा---"ऋषिवर ! आप तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ जाता हैं।"
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साधु ने समझाया, "तुमने अपने जीवन की परवाह ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व भूखों को खिला दिया। 
इसीलिए प्रभु अब उन गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।"
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कथासार- *किसी को भी कुछ भी देने की शक्ति हम में है ही नहीं, हम देते वक्त ये सोचते हैं, की जिसको कुछ दिया तो  ये मैंने दिया*!
दान, वस्तु, ज्ञान, यहाँ तक की अपने बच्चों को भी कुछ देते दिलाते हैं, तो कहते हैं मैंने दिलाया । 
वास्तविकता ये है कि वो उनका अपना है आप को सिर्फ परमात्मा ने निमित्त मात्र बनाया हैं। ताकी उन तक उनकी जरूरते पहुचाने के लिये। तो निमित्त होने का घमंड कैसा ??
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दान किए से जाए दुःख, दूर होएं सब पाप।।
नाथ आकर द्वार पे, दूर करें संताप।।☺☺
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कथा अच्छी लगी हो तो शेयर अवश्य करना ☺☺

क्या आप आजादी के पूर्व के दलित नेता जोगेन्द्र नाथ मंडल को जानते हैं?

क्या आप आजादी के पूर्व के दलित नेता जोगेन्द्र नाथ मंडल को जानते हैं? बंगाल में १९४६ में बनी सुहरावर्दी सरकार में मंत्री रहे जोगेंद्रनाथ मंडल ने हर कदम पर मुस्लिम लीग का समर्थन किया. विभाजन के बाद बनी पाकिस्तान सरकार में कानून और श्रम मंत्री बने. किन्तु जल्द ही दलित मुस्लिम भाई भाई नारे का यथार्थ उनकी सामने आ गया. पाकिस्तान का लक्ष्य पा लेने के बाद मुस्लिम लीग अपने दर उल इस्लाम को काफिरों से मुक्त करने के एजेंडे पर जुट गयी. फिर उनका क्या हुआ?
दलितों को मुस्लिम कट्टरपंथियों के भयावह उत्पीडन का शिकार होना पड़ा. आठ अक्टूबर १९५० को तत्कालीन पाकिस्तानी प्रधानमंत्री लियाकत अली को भेजे त्यागपत्र में उन्होंने लिखा, "सिलहट जिले के हबिबगढ़ में हिंदुओं, खासकर अनुसूचित जाती के लोगों के साथ पुलिस और सेना का बर्बर अत्याचार विस्तार से बताने योग्य है. स्थानीय पुलिस और मुसलमानों ने निर्दोष औरतों मर्दों को बर्बरतापूर्वक प्रताड़ित किया, औरतों की आबारू लूटी गयी, उनके घरों को तोड़कर उनके समान लुटे गए. शहर में जहाँ भी हिंदू दिखे, उन्हें मार डाला गया. पुलिस के अला अधिकारीयों की मौजूदगी में सब कुछ होता रहा."
आगे उन्होंने लिखा है की ढाका और पूर्वी बंगाल में करीब १०००० हिंदू मारे गए हैं. पश्चिमी पंजाब में अनुसूचित जाती के एक लाख लोग थे. बड़ी संख्या में इनका मतांतरण किया गया है. शरिया की व्यवस्था में केवल मुसलमान ही शासक हैं, बाकी जिम्मी (जान बख्शने के बदले जजिया दने वाले गैर मुस्लिम) हैं. मैं अपनी आत्मा पर इस झूठ और छलावे का और बोझ ढो नहीं सकता. इसलिए आपके मन्त्रिमन्डल से त्यागपत्र दे रहा हूँ. भोले भाले बेचारे दलित हिंदुओं को आसान शिकार बनाने की मुस्लिम लीग की उस रणनीति को आज ओवैशी ने अपना लिया है और उन्हें बरगलाने केलिए जय मीम और जय भीम का नारा लगा रहा है और रोहित वेमुला जैसे हजारों लोगों को बरगला कर उन्हें अपने ही देश धर्म का दुश्मन और गद्दार बना रहा है. दुर्भाग्य से पहले की तरह इस बार भी इस षड्यंत्र को नीच और गद्दार कम्युनिष्टों का समर्थन और सहयोग प्राप्त है. दलित मुस्लिम गठजोड़ का समर्थन कर कम्युनिष्ट शेष भारत के दलितों को भी इस्लामी तलवार के निचे लाने का षड्यंत्र कर रहा है.
ओवैशी दलित हिंदुओं को सब्ज बाग दिखा रहा है की दलित मुस्लिम मिलकर भारत पर शासन कर सकते हैं और साथ में यह सच्चाई भी बता रहा है की जब दलित मुसलमानों का राज भारत में होगा तो मुसलमान लाल किला और ताजमहल बनाएंगे और दलित मजदूर उसे बनाएंगे. बिल्कुल सही कहा है, परन्तु उन दलित मजदूरों को दो वक्त की रोटी मिल जायेगी इसकी क्या गारंटी है. भारत का इतिहास तथा पाकिस्तान-बंगलादेश का वर्तमान तो यही प्रदर्शित करता है की दलितों को जीने का अधिकार भी नहीं है मुस्लिम शासन में. यह खतरनाक है की मुसलमानों के कंधे से कंधे मिलाकर पाकिस्तान का समर्थन करने वाले गद्दार कम्युनिष्ट दलितों को मुसलमानों का साथ सहयोग करने केलिए तैयार कर फिर से भारत विभाजन और दलितों के संहार की नीब रख रहे हैं.
इतना ही नहीं ये दलित हिंदुओं के साथ ओबीसी को भी भरमाने की कोशीश कर रहे हैं. दरअसल इनका निशाना केवल दलित हिंदू ही नहीं है बल्कि ये इस निति पर कार्य कर रहे हैं की दलितों और ओबीसी के सहयोग से ब्राह्मणों और राजपूतों को समाप्त कर सत्ता हथियाया जाय और फिर सत्ता में आने के बाद दलितों को समाप्त करना इनके बाएं हाथ का खेल होगा.

चमार कोई नीच जाति नहीँ सनातन धर्म के रक्षक हैँ

#चमार कोई #नीच_जाति नहीँ #सनातन धर्म के रक्षक हैँ जिन्हेँ भी मुगलोँ का जुल्म सहना पडा था। (संत रविदास और धर्म रक्षा।)
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चमार कोई नीच जाति नहीँ सनातन धर्म के रक्षक हैँ जिन्हेँ भी मुगलोँ का जुल्म सहना पडा था। (संत रविदास और धर्म रक्षा।) उस समय संत रविदास जी का चमत्कार बढ़ने लगा था इस्लामिक शासन घबरा गया सिकंदरसाह लोदी ने सदन कसाई को संत रविदास को मुसलमान बनाने के लिए भेजा वह जनता था की यदि रविदास इस्लाम स्वीकार लेते हैं तो भारत में बहुत बड़ी संख्या में इस्लाम मतावलंबी हो जायेगे लेकिन उसकी सोच धरी की धरी रह गयी स्वयं सदन कसाई शास्त्रार्थ में पराजित हो कोई उत्तर न दे सके और उनकी भक्ति से प्रभावित होकर उनका भक्त यानी वैष्णव (हिन्दू) हो गया उसका नाम सदन कसाई से रामदास हो गया, दोनों संत मिलकर हिन्दू धर्म के प्रचार में लग गए जिसके फलस्वरूप सिकंदर लोदी क्रोधित होकर इनके अनुयायियों को चमार यानी चंडाल घोषित कर दिया। ( तब से इस समाज के लोग अपने को चमार कहने लगे) उनसे कारावास में खाल खिचवाने, खाल-चमड़ा पीटने, जुती बनाने इत्यादि काम जबरदस्ती कराया गया उन्हें मुसलमान बनाने के लिए बहुत शारीरिक कष्ट दिए गए लेकिन उन्होंने कहा ''वेद धर्म सबसे बड़ा, अनुपम सच्चा ज्ञान, फिर मै क्यों छोडू इसे, पढ़ लू झूठ कुरान। वेद धर्म छोडू नहीं, कोसिस करो हज़ार, तिल-तिल काटो चाहि, गोदो अंग कटार॥'' (रैदास रामायण) यातनाये सहने के पश्चात् भी वे अपने वैदिक धर्म पर अडिग रहे, और अपने अनुयायियों को बिधर्मी होने से बचा लिया, ऐसे थे हमारे महान संत रविदास जिन्होंने धर्म, देश रक्षार्थ सारा जीवन लगा दिया इनकी मृत्यु चैत्र शुक्ल चतुर्दसी विक्रम सम्बत १५८४ रविवार के दिन चित्तौड़ में हुआ, वे आज हमारे बीच नहीं है उनकी स्मृति आज भी हमें उनके आदर्शो पर चलने हेतु प्रेरित करती है आज भी उनका जीवन हमारे समाज के लिए प्रासंगिक है। हमें यह ध्यान रखना होगा की आज के छह सौ वर्ष पहले चमार जाती थी ही नहीं। इस समाज ने पद्दलित होना स्वीकार किया, धर्म बचाने हेतु सुवर पलना स्वीकार किया, लेकिन बिधर्मी होना स्वीकार नहीं किया आज भी यह समाज हिन्दू धर्म का आधार बनकर खड़ा है, हिन्दू समाज में छुवा-छूत, भेद-भाव, उंच-नीच का भाव था ही नहीं ये सब कुरीतियाँ इस्लामिक काल की देन है, हमें इस चुनौती को स्वीकार कर इसे समूल नष्ट करना होगा यही संत रविदास के प्रति सच्ची भक्ति होगी।